बेटी दिवस पर बेटी के नाम खत "कि याद तेरी जाती नहीं..."
बेटी दिवस पर बेटी के नाम खत "कि याद तेरी जाती नहीं...."
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खत पढ़कर तेरा आज जार-जार हूं बेटी,
लाचार हूं बेटी, कि याद तेरी जाती नहीं
आंगन की तू किलकारी थी,खुशियां हमारी थी
चिड़िया सी चहकती थी, प्राणों से भी प्यारी थी
इन हाथों से पाला तुझे मैंने दुलार से
गम की न पड़े छाया, यूं रखा था प्यार से
पर, रीति ऐसी क्रूर निभाना ही पड़ेगा
बापू को छोड़कर,तुझे जाना ही पड़ेगा।
बिना अपराध के भी गुनहगार हूं बेटी
लाचार हूं बेटी, कि याद तेरी जाती नहीं।
हंसना सिखाई थी मुझे रोना सिखा गई
राजी-खुशी से अपनों को खोना सिखा गई
आऊंगा घर में शाम, कौन हाल पूछेगा
पढ़कर मेरे चेहरे को,अब सवाल पूछेगा
कुंहकेगी न कोयल मेरा मकान देखकर
कैसे मिटेगी थकन वो मुसकान देखकर
चट्टान था मैं आज तार-तार हूं बेटी
लाचार हूं बेटी,कि याद तेरी जाती नहीं।
पैदा हुई तो यूं लगा परी ही आ गई
मालुम न पड़ा, जाने की घड़ी भी आ गई
आंगन भी रोएंगे मेरी देहरी भी रोएगी
पानी से भरती ग्लास, वो गगरी भी रोएगी
न चाहते हुए तुझे भेजा तो चल पड़ी
रोते हुए तू चीरकर कलेजा चल पड़ी
जीत कर भी सबसे बड़ी हार हूं बेटी
लाचार हूं बेटी,कि याद तेरी जाती नहीं।
रिश्तों का क्या वजूद है तुमने सिखा दिया
करुणा व त्याग भाग्य में तेरे लिखा दिया
बेटे न बेटी बन सके दुनिया में आजतक
बेटी थी मगर बेटा भी बनकर दिखा दिया
मरने के बाद पूछूंगा भगवान से बेटी
बिटिया को ही क्यों त्याग की मूरत बना दिया
मुसकाता हूं पर दिल से जार-जार हूं बेटी, लाचार हूं बेटी,कि याद तेरी जाती नहीं।
* कवि : सुरेश मिश्र ( मुंबई )