कविता : मैं ही हूँ.....  कवि - राजेश कुमार लंगेह

कविता : मैं ही हूँ.....  कवि - राजेश कुमार लंगेह

कविता : मैं ही हूँ..... 

* कवि - राजेश कुमार लंगेह

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वो जो काले, खाकी, हरे लिबास में लड़ रहा है मैं ही हूँ 
वो जो अँधेरे में भिड़ रहा है मैं ही हूँ 
मैं ही हूँ जो रक्त से भीगा है 
दुश्मन के सीने को चीरता भी मैं ही हूँ 
मैं ही हूँ पहाड़ों की चोटियां को वश में करने वाला 
मैं ही हूँ समुद्रों की गहराई मापने वाला 
नदियों को मोड़ने वाला, सरहदों को जोड़ने वाला
आसमान को फर्लांगता मैं ही हूँ 
हाँ मैं ही हूं, मैं ही हूँ ....


मैं ही हूँ जो जर्जर हो चुका पर नया दिखता हूँ 
उठा गोवर्धन बारिश में भीगता भी मैं ही हूँ 
मंथन हो, अमृत भी हो पर जहर पीता  मैं ही हूँ 
हाँ  मैं ही हूँ
मैं ही  हूँ .....


बुरे वक़्त का खुदा भी मैं 
बुरे असर को  दूर करने की दवा  भी मैं ही हूँ 
टूटती बिखरती हिम्मत की आशा 
मनमानी मौंजों में माझी का सहारा  भी मैं ही हूँ ...

हाँ मैं हूँ सिपाही, प्रहरी 
हर सवाल का जबाब  भी मैं  ही हूं 
हर रोशन जहां का जमाल  भी मैं ही हूँ 
हर मुश्किल हालात में कमाल भी मैं ही हूँ
बहादुरी और जज्बातों की मिसाल भी मैं  ही हूँ 
तेरे हर मुश्किल वक़्त में साथ तेरे मैं ही हूँ 
हाँ मैं ही हूँ
बस साथ रख लेना अपनी Huयादों में 
तेरी इमारत की नींव का पत्थर भी मैं ही हूँ ,
मैं ही हूँ......

- जम्मू