कविता : रिश्ता बुलबुला नहीं जो फ़ना हो जाएगा.....

कविता : रिश्ता बुलबुला नहीं जो फ़ना हो जाएगा.....

कविता :

 रिश्ता बुलबुला  नहीं जो फ़ना हो जाएगा.....

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मुस्कानों में देख रिश्तों की गरमाहट ,
रिश्ता बुलबुला नहीं जो फ़ना हो जाएगा,  
 तूफ़ाँ आए जितने चाहे, छूटेगा साथ नहीं, 
खालिस है ज़ज्बात, कोई धुआं नहीं जो हवा हो जाएगा
रिश्ता बुलबुला नहीं जो फ़ना हो जाएगा। 

सुकून चाहिए था इसीलिए छूट गया था , दूसरों के ख्यालों का सुनना 
हर किसी के अच्छे बुरे मशवरों को भूल गया था चुनना ,
शबनम नहीं हूँ जो सूरज की पहली किरण से धुआं हो जाएगा 
रिश्ता बुलबुला  नहीं जो फ़ना हो जाएगा ।

हाथ की लकीरों ने मिलाया है 
पाक मुहब्बत से सजाया है 
रिसते ज़ख्म गवाह हैं बड़े हौंसले से बचाया है 
तिनका नहीं है जो हवा हो जाएगा 
रिश्ता बुलबुला नहीं जो फ़ना हो जाएगा।

वक़्त ने इम्तिहान ले लेकर परखा है हमको 
कितना पक्का है भरोसा मालूम है सबको 
कोई ईद का चांद नहीं जो कल जुदा हो जाएगा 
रिश्ता बुलबुला  नहीं जो फ़ना हो जाएगा।

    *  कवि : राजेश कुमार लंगेह
                              ( जम्मू )