कविता : शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए
कविता : शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए ...
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शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए
शब्दो का भी एक पैमाना चाहिए
म्यार हैं शब्द किरदार का
सफर है, मायने है , हर एक शब्द का
कहां तक पहुंचे उसके असर का
लबों से निकले तो रूह तक जाना चाहिए
शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए।
शब्द चुरा कर शब्द बना लो तुम
कड़क चाय हो या उलझी जलेबी सी जिंदगी
शब्दों का मरहम बना लो तुम
हर शब्द को एक एहसास होना चाहिए
शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए।
क्या बात करे शब्दों की तासीर की
सकून भी, मरहम भी और आग भी
शब्द बहके तो घाव भी
शब्द महके तो लगाव भी
शब्द परवरिश की पहचान भी
शब्द ख्याल हैं मशाल भी
शब्द तरंगों का उफान ठहराव भी
शब्द स्वरों, साँसों का बहाव भी
शब्दों का भी एक आईना चाहिए
शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए।
शब्द की गिरावट हस्ती मिटाती है
हो सुन्दर शब्द तो गरिमा बढ़ाती है
शब्द ज़ज्बात की गहराई बताता है
तराजू पर हर शब्द को खरा उतरना चाहिए
शब्दों को भावों में भिगोना चाहिए
शब्दों को भी खिलखिलाना चाहिए ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( बीएसएफ - छत्तीसगढ़ )