बाल-कथा - नवतरुण बने रहने का रहस्य
बाल-कथा
नवतरुण बने रहने का रहस्य
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बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में शंकर नाम का एक वृद्ध व्यक्ति रहता था। उसकी उम्र अस्सी साल से भी अधिक थी पर वो चालीस साल के व्यक्ति से भी कम उम्र का लगता था।
लोग बार-बार उससे उसकी सेहत का राज जानना चाहते पर वह ये किसीको नहीं बताता था ।
एक दिन राजा को भी उसके बारे में पता चला तो वो भी उसकी अच्छी सेहत का रहस्य जाने के लिए उत्सुक हो गए। राजा ने अपने गुप्तचरों से शंकर पर नज़र रखने को कहा। गुप्तचर भेष बदल कर उस पर कड़ी नज़र रखने लगे।
अगले दिन उन्होंने देखा की शंकर भोर में ही उठ कर कहीं जा रहा है , वे भी उसके पीछे लग गए। शंकर तेजी से चलता चला जा रहा था। मीलों चलने के बाद वो एक पहाड़ी पर चढ़ने लगा और फिर अचानक गुप्तचरों की नज़रों से गायब हो गया।
गुप्तचर वहीँ रुककर उसका इंतज़ार करने लगे। कुछ देर बाद वो वापस लौटा तब उसने मुट्ठी में कुछ छोटे-छोटे फल पकड़ रखे थे और उन्हें खाता हुआ चला जा रहा था। गुप्तचरों ने अंदाज़ा लगाया कि हो न हो शंकर इन्ही रहस्यमयी फलों को खाकर ही इतना स्वस्थ्य है।
अगले दिन दरबार में उन्होंने राजा को सारा किस्सा कह सुनाया। राजा ने उस पहाड़ी पर जाकर उन फलों का पता लगाने का आदेश दिया । पर बहुत खोज-बीन करने के बाद भी कोई ऐसा असाधारण फल वहां नहीं दिखा।
अंततः थक-हार कर सभी वापस लौट आये।
राजा ने अब शंकर को दरबार में हाज़िर करने का हुक्म दिया।
राजा ने शंकर को घूरते हुए कहा – ' शंकर , इस उम्र में भी तुम्हारी इतनी अच्छी सेहत देखकर हम प्रसन्न हैं , बताओ , तुम्हारी इतनी अच्छी सेहत का रहस्य क्या है ?
शंकर कुछ देर सोचता रहा और फिर बोला - ” महाराज , मैं रोज पहाड़ी पर जाकर एक रहस्यमयी फल खाता हूँ , वही मेरी सेहत का रहस्य है। “
राजा ने कहा - " ठीक है चलो हमें भी वहां ले चलो और दिखाओ वो कौन सा फल है। "
अब सभी लोग पहाड़ी की ओर चल दिए , वहां पहुँच कर शंकर उन्हें एक बेर के पेड़ के पास ले गया और उसके फलों को दिखाते हुए बोला -” हुजूर , यही वो फल है जिसे मैं रोज खाता हूँ। “
राजा क्रोधित होते हुए बोले -” तुम हमें मूर्ख समझते हो , यह फल हर रोज हज़ारों लोग खाते हैं , पर सभी तुम्हारी तरह सेहतमंद क्यों नहीं हैं ?”
शंकर विनम्रता से बोला - ” महाराज , हर रोज़ हजारों लोग जो फल खाते हैं वो बेर का फल होता है , पर मैं जो फल खाता हूँ वो सिर्फ बेर का फल नहीं होता वो मेरी मेहनत का फल होता है। इसे खाने के लिए मैं रोज सुबह दस मील पैदल चलता हूँ जिससे मेरे शरीर की अच्छी वर्जिश हो जाती है और सुबह की स्वच्छ हवा मेरे लिए जड़ी-बूटियों का काम करती है। बस यही मेरी सेहत का रहस्य है। “
राजा शंकर की बात समझ चुके थे , उन्होंने शंकर को स्वर्ण मुद्राएं देते हुए सम्मानित किया और अपनी प्रजा को भी शारीरिक श्रम करते रहने की नसीहत दी।
* लेखिका - कविता सिंह
( नोएडा - गौतम बुद्ध नगर )