कहानी :  जीवन एक मृगतृष्णा !

कहानी :  जीवन एक मृगतृष्णा !
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ये कहानी एक राजा और एक  भिखारी की है।

एक सुबह  राजा जब सैर पर निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते मे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह से खुश व संतुष्ट कर देगा।

तभी उसे एक भिखारी मिला। 

भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।

वह सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। 

भिखारी नाली में हाथ डालकर तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने उसे बुलाकर दूसरा तांबे का सिक्का दिया। भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा हुआ सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा को लगा कि भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दे दिया।

भिखारी राजा की जय-जयकार करते हुए फिर से नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।

भिखारी अब तो खुशी से झूम उठा था। पर वह वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।

राजा को ये देखकर बहुत बुरा लगा। पर उसे स्वयं से तय की गयी वह बात याद आ गयी कि- आज सबसे पहले मिलनेवाले व्यक्ति को खुश एवं संतुष्ट करना है।

उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो ?

भिखारी बोला- मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा....

-कथासार : हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। 
जब परमात्मा हमे अपार खजाना देना चाहता है तब भी हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं अर्थात छोटी-छोटी चीजों के पीछे भागते रहते हैं।
मनुष्य की तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है अतः हमें अपना कीमती समय सब कार्य करते हुए परमात्मा के ध्यान में अवश्य लगाना चाहिए।

* लेखिका : कविता सिंह
  ( गौतम बुद्ध नगर - नोएडा )