कविता : बस खेल जरूरी है
कविता : बस खेल जरूरी है
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ना जीत गरूरी है
ना हार मजबूरी है
इक खेल है यह जिंदगी
बस खेल जरूरी है ।
खेल तमाशे हैं
ढोल और ताशे हैं
इन शोर - शराबों की भी
हिस्सेदारी जरूरी है
इक खेल है यह जिंदगी
बस खेल जरूरी है।
सब शतरंग के मोहरे हैं
कुछ टूट गए कुछ मोड़े हैं
जीवन की बिसात पर
बस चाल जरूरी है
इक खेल है यह जिंदगी
बस खेल जरूरी है।
ना दु:ख की कोई अवधि है
ना सुख ही बेदर्दी है
सिक्के के यह दो पहलु हैं
सिक्के की उछाल जरूरी है
इक खेल है यह जिंदगी
बस खेल जरूरी है।
तू क्या मैं, मेरा करता है
बेवजह मोह-माया में पड़ता है
कुछ है ही नहीं तेरा
फिर हक़ क्यों जरूरी है
इक खेल है यह जिंदगी
बस खेल जरूरी है।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( बीएसएफ )