व्यंग्य कविता : वाह भाई वाह

व्यंग्य कविता : वाह भाई वाह

    व्यंग्य कविता : वाह भाई वाह

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सइयां अब तो हैं कोतवाल, वाह भाई वाह,
उछल रहे सब नटवरलाल, वाह भाई वाह।

हरिश्चंद्र के पूत बने थे जो अब तक,
पोल खुली तो हैं बेहाल, वाह भाई वाह।

सूरज को अब आंख दिखाकर जुगुनू भी,
देखो ठोंक रहे हैं ताल, वाह भाई वाह।

'नाच न आवे आंगन टेढ़ा' वाले भी,
बजा रहे हैं जीभर गाल, वाह भाई वाह।

पानी सिर के ऊपर जब तक जाए न,
हम सब करते कहां सवाल, वाह भाई वाह।

कानों में जो तेल डालकर बैठे थे,
रोज ला रहे हैं भूचाल,वाह भाई वाह।

खुद को 'सबसे तेज' बताने वाले भी,
आज चल रहे कछुआ चाल, वाह भाई वाह।

नहीं दाल में काला है कुछ बाबूजी,
काली है अब पूरी दाल, वाह भाई वाह।

'कोउ नृप होइ हमइ का लाभ' अगर पूछो,
लोकतंत्र हो जाय हलाल, वाह भाई वाह।

वृद्धाश्रम में सिसक-सिसक कर मां बोली,
'सरवन जइसा हमरा लाल', वाह भाई वाह।

* रचनाकार : सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक ) मुम्बई