कविता : क्या है तेरी मौज ?
कविता : क्या है तेरी मौज ?
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क्या है तेरी मौज
जान पहचान खुद को
थोड़ी अपनी भी सुध लो
ना बनो खुद की सोज
बता क्या है तेरी मौज
दौलत कमा ली
शोहरत कमा ली
अपनी हस्ती तक मिटा ली
फिर भी क्या तलाश है हर रोज
बता क्या है तेरी मौज
दूसरों को खुश करते-करते
हँसी तक भूल गया
सबको बांटते-बांटते
तू कब का बंट गया
उठ अब तो खुद को खोज
बता क्या है तेरी मौज
क्या है जो तुम्हें खुशी दे
बिन कोशिश चेहरे पर हंसी ला दे
क्या करे कि बड़े तेरा औज
बता क्या है तेरी मौज
जी ले खुद के लिए
बहुत सह ली दुनिया की
उतार फेंक बेमतलब के बोझ
बता क्या है तेरी मौज
खुद से लड़ते रहते हो
अन्दर ही अन्दर घुटते रहते हो
उठ बन जा खुद की फौज
बता क्या है तेरी मौज
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह (बीएसएफ)