कविता : वो मेरी आँखों का सपना...
कविता : वो मेरी आँखों का सपना...
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वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता,
नम हो जितनी भी आंखें पर रोने नहीं देता ,
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
छू लेता है आखिर वो मुझे रूह तक
जान जाता है मेरा हर मर्ज, वो चेहरा देखकर
हार जाने को होता हूं, पर हारने नहीं देता
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
हर मुसीबत का हल उसके पास है
मुझसे ज्यादा मुझ पर उसको विश्वास है
तपते सेहरा में भी तनहा होने नहीं देता
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
मेरी ख्वाहिश को भी मेरी जरूरत की तरह तौले
मेरी हर फिक्र हर जिक्र में साथ हो ले
अंधेरी सियाह रातों में भी कभी डरने नहीं देता
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
नम हो जितनी भी आंखें पर रोने नहीं देता।
मुझ सा पर मुझसे बेहतर शख्स है वो
किरदार बेशकीमती ख़ुदाबख्श है वो
दुश्मनों से भरे जंगी मैदान में मरने नहीं देता
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
दोस्त है मेरा भाई भी हमराज भी
हर दुख सुख का साथी मेरा जन्मों का साथ भी
कशमकश हो कितनी भी पर डगमगाने नहीं देता
वो मेरी आँखों का सपना, मुझको कभी सोने नहीं देता ।
नम हो जितनी भी आंखें पर रोने नहीं देता।
* कवि : राजेश कुमार लंगेह ( बीएसएफ)