कविता : कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध

कविता : कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध

कविता : कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध

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कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध 
 हवा में लहराती हो बिन पंख 
खुशबु का झोंका खिंचे 
 नादां दिल नाचे हो के मलंग 
कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध ।

कभी अठखेलियाँ बच्चों सी 
कभी मसले सुलझाए पंचों सी 
 कभी ठहराव सागर सा ,कभी टूटी सी पतंग 
कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध ।

खुश हो तो खुशियां नाचे 
हो गमगीन तो कलेजा काटे 
कभी तूफान से पहले की चुप्पी कभी मृदअंग 
कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध ।

तुमको सोचूँ तो बिखरे हवाओं में छन्द
तुमको देखूँ  तो सब आये पसंद 
कभी बहुत दूर नज़र आये कभी संग
कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध ।

अदबी सब बातें तेरी 
साथ तेरा सौगातें मेरी 
तेरा मैं तुम मेरी 
कभी मेरा रूप कभी तेरा मैं रंग 
कभी रंग बिखेरती हो कभी सुगंध ।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( बीएसएफ )