कविता : वो जीवन अतुलनीय है
कविता : वो जीवन अतुलनीय है
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अंतर्मन का द्वंद
स्वयं से स्वयं का बार-बार संघर्ष
पर होंठों पर मुस्कान मधुर
जीवन का श्रेष्ठ परिचय है
वो जीवन अतुलनीय है
उथल-पुथल जीवन में
कुछ फर्क नहीं पाने और खोने में
प्रगतिशील से विचार
वो अभिनय दर्शनीय है
वो जीवन अतुलनीय है
इंसा है क्या इक कठपुतली
वक़्त, हादसों का गुलाम
कोई आधारभूत नहीं
बस वक़्त का फरमान
हाथ तंग ,जीवन उलझन भरा
पर चेहरे पर शांत भाव
वो साहस प्रशंसनीय है
वो जीवन अतुलनीय है
हार जीत के विचारों से कोसों दूर
हर पल सन्तुष्टि, खुशी भरपूर
ना ऊपर ना नीचे सबको एक सा सींचे
ना खुद को रोके ना ही खींचे
वो चरित्र दर्शनीय है
वो जीवन अतुलनीय है
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह (जम्मू )