कविता : गागर
कविता : गागर
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छलक न जाए दुख की गागर
आओ इसे सम्हाल लें,
समय पे समय का आदर कर के हँसकर समय निकाल लें।
इस गागर में दुख और सुख के अनुभव का है द्रव्य भरा,
हारे न हम किसी भी दुख में
सुख में अहम न पाल लें।
इस गागर में छिपे हुए हैं
आशाओं के मेले भी,
बुरी आस को फेंक के मन से आस अच्छी को पाल लें।
अंत समय अच्छी यादों के
गागर में अवशेष रहें,
रूह और तन को तपा तपाकर कुंदन सा निखार लें।
*कवयित्री : रजनी श्री बेदी
( जयपुर-राजस्थान)