राजेश कुमार लंगेह की विशेष रचना : मैं काली वर्दी हूँ....
राजेश कुमार लंगेह की विशेष रचना ...
मैं काली वर्दी हूँ....
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मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ
सिर्फ जिस्म नहीं ढंका मैंने
मैं रूह में भी सिमटी हूँ
मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ ।
सजा कर मुझको तुम सूरज सा चमकते हो
टांग कर शमशीर मुझसे, शेर से गरज़ते हो
आन हूँ शान हूँ, मान हूँ जो तुझपे फबती हूँ
मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ ....
पहनकर मुझे परवाज तेरी ऊँची होती है
साँस दुश्मनों की कभी नीचे, कभी ऊपर होती है
चार गज़ कपड़ा नहीं मैं सिर्फ
तेरी पहचान हूँ , तेरी हस्ती हूँ
मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ .....
माना कि तुमने मुझे मशक्कत से कमाया है
बना के जिस्म फौलाद का फिर मुझे पाया है
मैं भी तेरा सरमाया तेरी पहचान हूँ जो बरसों रहती है
मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ.....
वादा है मेरा तेरा जिस्म , तेरी रूह सम्भाल लूँगी
भरकर तुममें जोश और होश , दुश्मनों से लड़ लूँगी
आएगा वक़्त जब ज़ुदा होने का
तेरे जिस्म से पहले मैं तार-तार हो जाऊँगी
बनकर सम्मान तेरा अमर, सदा को तुम्हें कर जाऊँगी
मैं तेरा असर हूँ, तेरी नजर हूँ
जो हर वक़्त दुश्मनों पर टिकी हूँ
मैं काली वर्दी हूँ जो
हमेशा तुमसे लिपटी हूँ.....
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( जम्मू )