कविता : एक बात पूछूं ?
कविता : एक बात पूछूं ?
* कवि : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )
एक बात पूछूं
सच सच बोलना
थोड़ा भी कुफ्र नहीं तोलना
मै बुरा भी मानू रूठ भी जाऊँ
पर सच्ची सच्ची बोलना
प्यार तो है ना, देखो झूठ मत बोलना
एक बात पूछूं ....?
एक बात पूछूं
वो जो लम्हे गुजारे
उनमें सिर्फ मैं ही था ना
जो ख्वाब तेरी आँखों में पले
उनमें मैं ही था ना
टूटते तारों को देख तूने मुझे ही माँगा था ना
एक बात पूछूं....?
वो जो तेरे चेहरे पर नूर लाता है
वो जो आँखों से समंदर बहता है
वो यकीन, जिस पर तुम्हें यकीन आता है ना
वो मैं ही हूँ ना
एक बात पूछूं...?
एक बात पूछूं
वो दीवानगी जो हर बात में झलकती है
मेरी हर तकलीफ़ में जो आंख तेरी छलकती है
वो जो कराह दबी सी रह जाती है ना
हर वक़्त मेरी याद तड़पती है ना
एक बात पूछूं .....?
दूर हूं पर दूर नहीं
चुप रहना कोई गुनाह तो नहीं
वक़्त ने इम्तिहान लिया है ना
देख लो इसने प्यार और भी बड़ा दिया है ना
एक बात पूछूं ....?
बस ऐसे ही रहना
दुनिया चाहे छोड दे
तुम बस साथ रहना
मेरी हर बात में तू है
मेरे हर सवाल का ज़वाब तू है
हर सबब में तू है
एक तू है तो सब है ना
बोल सब है ना
एक बात पूछूं....... ?