निजी जमीन की चालों के पहली मंजिल वाले नागरिकों के पक्के मकान का प्रश्न : मेरिट पर ले जाकर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे गोपाल शेट्टी

निजी जमीन की चालों के पहली मंजिल वाले नागरिकों के पक्के मकान का प्रश्न : मेरिट पर ले जाकर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे गोपाल शेट्टी

निजी जमीन की चालों के पहली मंजिल वाले नागरिकों के पक्के मकान का प्रश्न : मेरिट पर ले जाकर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे गोपाल शेट्टी

* अमित मिश्रा

    बोरीवली : मुम्बई को झोपड़पट्टी मुक्त कराने के विजन के साथ उसमें रहने वाले नागरिकों को खुद का पक्का मकान दिलाने के लिए वर्षों से इस मुहिम में जुटे उत्तर मुम्बई के पूर्व सांसद गोपाल शेट्टी इस प्रयास में भी रहे हैं कि निजी जमीन की चालों में पहली मंजिल पर रहने वाले निवासियों को भी पक्का मकान दिला सकें। परंतु हाल ही में माननीय न्यायालय द्वारा निरस्त की गई उनकी इस संदर्भ की याचिका के कारण उनकी मांग ,विशेषतः पहली मंजिल के लोगों के लिए पक्के मकान के प्रयास पर जैसे अंकुश सा लगने जैसी स्थितियां बन रही हैं। ऐसे में भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कविता "हार नहीं मानूंगा"से प्रेरणा लेते हुए जनसेवक गोपाल शेट्टी ने तय किया है कि प्राइवेट लैंड की चालों में पहले महले वाले नागरिकों को भी पक्का मकान मिलने जैसे प्रश्न को आवश्यकता पड़ी तो पुनः अदालत ले जाएंगे और मेरिट पर इसे प्रस्तुत करवाते हुए इसका हल लेकर लौटेंगे। जनसेवक शेट्टी का स्पष्ट मत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब चाह रहे हैं सबको उनके हक का पक्का घर मिले तो उनके विजन को साकार रूप देना सबका फर्ज बनता है।
 जनसेवक गोपाल शेट्टी ने कहा कि मुंबई शहर में वर्षों पहले विभिन्न उद्योगों ने यहां अपनी जगह बनाई थी, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हुए थे। इस वजह से यूपी, बिहार सहित अनेक राज्यों से लोग मुंबई में आकर बसने लगे थे। मुंबई के विकास की शुरुआत टेलीफोन व्यवस्था, रेलवे और वस्त्र उद्योग से हुई। इसके बाद सीवरेज सिस्टम भी विकसित किया गया। लोगों को रोजगार मिला और साथ ही साथ झोपड़ों/चालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। उस काल में शासन के किसी भी कानून में लोगों को पक्के घर देने की कोई योजना नहीं थी। उस समय जमीन मालिकों ने १+१ के घर बनाकर उन्हें किराए पर देना शुरू किया। अपर्याप्त व्यवस्था के कारण धीरे-धीरे मुंबई में झोपड़पट्टी बढ़ने लगी।
इसके बाद 1971 में प्रभाकर कुंटे ने "स्लम एक्ट" कानून लागू किया, जिसका उद्देश्य झोपडावासियों को  सुविधाएं प्रदान करना था। इसके बाद इस कानून में संशोधन करके पुनर्निर्माण/पुनर्विकास कानून बनाया गया। इस कानून के तहत झोपड़पट्टी/चाल निवासियों को १८० फीट के घर देने की योजना बनाई गई। यही झोपडपट्टी पुनर्वसन योजना तब अस्तित्व में आई थी।
 देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २०१५ में एक कानून बनाया था, जिसका उद्देश्य सभी को घर देना था। इसके बाद महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने, और उन्होंने २०२१ में इस कानून को लागू किया, जिसमें झोपड़पट्टी/चाल में रहने वालों को पक्के घर देने की बात कही गई थी। पर सरकार बदलने के बाद, कानून में संशोधन किया गया, और प्राइवेट लैंड की चाल के निवासियों में पहली मंजिल पर रहने वालों को घर देने की बात ही खारिज कर दी गई। इसके बाद कोरोना काल में दो साल बीत गए, और फिर जनसेवक गोपाल शेट्टी ने इस कानून के खिलाफ एक जनहित याचिका कोर्ट में दायर की। जो माननीय अदालत ने निरस्त कर दी है। जनसेवक शेट्टी को लग रहा है कि इस मुद्दे की प्रस्तुति शायद ठीक ढंग से नहीं हुई थी। अब इसे मेरिट पर ले जाकर पुनः प्रस्तुत करना होगा।
  जनसेवक गोपाल शेट्टी ने स्पष्ट कहा है कि आवश्यकता पड़ने पर इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक भी ले जाने का वे मन बना चुके हैं। अब देखना ये है कि पहली मंजिल के प्राइवेट लैंड की चाल के निवासियों के हक के लिए ताल ठोंककर मैदान में उतरे पूर्व सांसद को कौन- कौन सी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।