गज़ल : गर न मानो तुम्हें हम न समझाएगें ....
गज़ल : गर न मानो तुम्हें हम न समझाएगें ....
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गर न मानो तुम्हें हम न समझाएगें।
रेत पर घर बना कर ही दिखलाएगें।
भाव फूलों के जैसे जो कुचले गए,
बनके खुशबू फ़िजा में बिखर जाएगें।
तुम सुना लो हमें दर्द अपना समझ,
अश्क़ आँखों के रस्ते निकल पाएगें।
ये ज़रूरी नहीं दर्द अपना कहें,
हम तुम्हारे ग़मों की ग़ज़ल गाएगें।
भाव पत्थर बने ' भावना ' मिट गई।
हम जो मूरत बने तो भी मुस्काएगें।
* रचनाकार : भावना मेहरा
( आगरा )