कविता : प्रेम नि:शब्द है ...

कविता : प्रेम नि:शब्द है ...

    कविता : प्रेम नि:शब्द है ...
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प्रेम नि:शब्द है 
सादा संपूर्ण 
एहसासों से भरा 
ख़ाब ख़ाहिश सा मन मोहक 
प्रेम निशब्द है ।
शब्द भीतर होते हैं 
चुभन से 
अनकहे शब्द
जख्म से 
यहां भाव प्रवाह है 
झरने से 
प्रेम बसता है 
वहीं पे
प्रेम हमेशा आश्वस्त है
प्रेम नि:शब्द है ।
 केवल शब्द भर  नहीं हैं
इश्क के वजूद में 
जले गले मिट्टी में सने                         कभी बंजर से 
कभी खून से सने खंजर से 
प्रेम पाना नहीं अर्पित करना सर्वस्व है 
प्रेम नि:शब्द है ।
यहां नासमझी मजबूरी है
शब्द वहीं बहुत ज़रूरी हैं 
यहां प्रेम की जलती मशाल है
वहां फिर कहाँ शब्दों का माया जाल है 
प्रेम खुद ही शब्द                                 खुद ही अर्थ है 
प्रेम नि:शब्द है।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
                         ( जम्मू )