कविता : वचन मांगता हूँ
कविता : वचन मांगता हूँ ....
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वचन मांगता हूँ ,यत्न मांगता हूं
क्षमाशील हुई हो रिपु समक्ष तुम
अब रिपु का शीश मांगता हूँ वचन मांगता हूँ , यत्न मांगता हूं ।
अबला नहीं तुम सबल हो
हर घर का तुम मनोबल हो
चंडी तुम, लक्ष्मी तुम
जहां का सृजन भी तुम ही हो
बढ़े जो हाथ इज्जत के लुटेरों के
उनके शीशों का हरण मांगता हूँ
वचन मांगता हूँ ,यत्न मांगता हूं ।
ना लाचार तुम ना कोई बीमार हो
ना ही टूटी-फूटी कोई दीवार हो
बैखौफ परिंदे की तुम तो परवाज़ हो
तुम ही अंतिम तुम ही आगाज हो
उठो चलो हुंकार भरो
अब तेरी ललकार मांगता हूँ वचन मांगता हूँ , यत्न मांगता हूं।
कृष्ण सा भाई नहीं हूँ मैं
जो द्रौपदी सा हर बार बचा लूं
लक्ष्मण सा भी नहीं जो
रेखा खींच रावण को भगा दूं
कृष्ण से लक्षण सा तुम में अंश मांगता हूं वचन मांगता हूँ ,यत्न मांगता हूं।
रक्षक हूँ तेरा पर यह भी जानता हूँ
पहुंच जाऊं वक्त पे वक्त मांगता हूँ
रावण, कंस, दानव भरे जहां में
परख उनको, वो नज़र मांगता हूं
निर्भया नहीं तुम,तुम में चंडी है
चंडी सा प्रहार मांगता हूँ
वचन मांगता हूँ , यत्न मांगता हूं।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )