कविता : खिलाता तो बाप ही है...

कविता : खिलाता तो बाप ही है...

कविता : खिलाता तो बाप ही है

*******************

अपने पैसों से तो सिर्फ भूख 
 मिटती है 
खिलाता तो बाप ही है 
अपने पैसों से तो जरूरतें 
बस हो पूरी
ज़िद्द तो पूरी करता बाप ही है 
खिलाता तो बाप ही है ।

बाप ने कमाया तो कभी 
कम नहीं पड़ा 
होली-दिवाली हर बार 
कपड़ा नया सिला 
लाखों कमाए 
जेबों में,तिजोरियों में पड़े
पर कब ख्वाब पूरे हुऐ 
 ख्वाहिशों को जरूरत मान कर पूरी करता तो बाप ही है 
खिलाता तो बाप ही है ।

जो चाहा वो किया 
जो मांगा उसने वो दिया 
लड़खड़ाए जो क़दम 
तो सहारा भी दिया 
पुचकार कर, डांट कर
संभालता तो बाप ही है 
खिलाता तो बाप ही है।

ऐशो-आराम की जब बात चले 
बचपन को सब याद करें 
बेफिक्री के आलम को जब सोचो 
तो फिर से बचपन में झाकों 
सबसे अहम होने का एहसास 
दिलाता तो बाप ही है 
खिलाता तो बाप ही है।

* रचनाकार - राजेश कुमार लंगेह        (जम्मू )