कारगिल विजय दिवस पर विशेष कविता " कारगिल के पहाड़ों पर "

कारगिल विजय दिवस पर विशेष कविता " कारगिल के पहाड़ों पर "

कारगिल विजय दिवस पर विशेष कविता " कारगिल के पहाड़ों पर "

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तिरंगे में लपेट कर उतार लेंगे लोग 
शौर्य फिर भी जिंदा रहेगा कारगिल के पहाड़ों पर 
कोई मुड़ कर देखे ना देखे मेरे ताबूत को 
कोई बात , कोई हर्ज नहीं 
हम तो यू हीं मिटते रहेंगे हंसते हुए 
कारगिल के पहाड़ों पर ।
मुश्किलें कितनी भी हों सह लेंगे 
सर्द गरम तूफान को भी थाम लेंगे 
तबज्जो मिले ना मिले मेरी शहादत को 
 कोई बात नहीं 
 फर्क पड़ता नहीं है 
मै तो इतने में ही खुश हूं 
देश का नाम खुद से जोड़कर 
कारगिल के पहाड़ों पर 
दुश्मनों को एहसास दिला दिया 
उठा जो सर उसको काट दिया
 सरहदों को देखा जिसने भी नापाक नज़र से 
कब्र उसकी वहीं बना दिया
ललकारा है, भगा-भगा कर मारा है 
 डराया है - हराया है 
दुश्मन की गर्दन मरोड़ कर
कारगिल के पहाड़ों पर
तिरंगे में लपेट कर उतार लेंगे लोग 
शौर्य फिर भी जिंदा रहेगा
कारगिल के पहाड़ों पर।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह                                    ( बीएसएफ )