कविता : जलेबी हूँ मैं ....
कविता : जलेबी हूँ मैं ....
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जलेबी हूँ मैं
अलग सी, अलबेली सी
मीठी रसधार सी
जलेबी हूँ मैं
हाँ जलेबी हूँ मैं
कौन सीधा है जहां में
सब टेढ़े-मेढ़े, टूटे-फूटे
गांठ लगे उलझे-उलझे
हर कोने से सीधी हूँ मैं
हाँ जलेबी हूँ मैं
क्या किरदार किसी का
क्या वकार किसी का
मतलबपरस्त दुनिया में
हर रिश्ते में दिखता व्यापार किसी का
उलझी हूँ बाहर से
पर अंदर से सुलझी हूँ में
हाँ जलेबी हूँ मैं
जो हुआ है मतलब से हुआ है
वायदे हजारों टूटे है जहां में
कौन कब किसका हुआ है
हर उम्र को मिल जाती हूँ मैं
शहद सी घुल जाती हूँ मैं
फ़ना होकर तुम्हारी हो जाती हूँ मैं
हाँ जलेबी हूँ मैं
ना जात मेरी ना पात मेरी
पानी सी औकात मेरी
खुशियों भरी सौगात मेरी
सिर्फ खुशी से बाबस्ता बात मेरी
गोल हूं पर झोल नहीं
जिंदगी का फलस्सफा हूं
कोई मखौल नहीं
हाँ जलेबी हूँ मैं
मुझ सा म्यार भी रखो
जिंदगी में कोइ अच्छा मकसद रखो
टेढ़े रहो, उलझे रहो पर मुस्कान रखो
जो भी हो पर जिन्दगी में मिठास रखो
अलग सी अलबेली सी
मीठी रसधार सी
जलेबी हूँ मैं
हाँ जलेबी हूँ मैं..
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( बीएसएफ ) छत्तीसगढ़