"ऑपरेशन सिंदूर" पर एक फौजी के जज़्बात- "तुझे क्या-क्या दिखाऊंगा..."

"ऑपरेशन सिंदूर" पर एक फौजी के जज़्बात- "तुझे क्या-क्या दिखाऊंगा..."
तुझे क्या-क्या दिखाऊंगा ?
अब तो मैं
आसमान पर भी लकीरें खींच दूंगा,
अपने हिसाब से
बादलों को टुकड़ों में बाँट दूंगा।
हवाओं की चाल देख कर
उन्हें भी छांट दूंगा,
रंग बदलते मौसमों को
सलीके से थाम लूंगा।
मैं सिपाही हूँ जनाब,
बड़े दिल से तुझे याद किया है।
अब हाथों को आज़ाद कर दूंगा,
और देख—
तुझे नापाक से पाक कर दूंगा।
बड़ी हसरत थी
तेरे गुरूर को तोड़ने की,
अब तुझे नेस्तनाबूद कर दूंगा,
तेरा वजूद ही खत्म कर दूंगा।
अभी उठा ही हूँ मैं—
फिर भी थरथराहट क्यों है?
तुझे पानी के लिए भी
तरसा दूंगा।
तेरी छाती चीर कर
अपनी प्यास बुझा लूंगा।
अब देख तू ध्यान से,
दिन में तारे दिखा दूंगा।
बहुत सहा है मैंने—
अब गिन-गिन के,
चुन-चुन के
बदला लूंगा।
फड़क रही हैं बाहें मेरी,
आज तुझे नफरतों में ही
फना कर दूंगा।
जा—जहाँ छुप सकता है,
छुप जा,
तेरे बिल से भी
घसीट कर तबाह कर दूंगा।
देखता चल—
तुझे क्या-क्या दिखाऊंगा।
* रचनाकार - राजेश कुमार लंगेह
(बीएसएफ)