कविता : यादें...

कविता : यादें...

कविता : यादें...

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इस जीवन की शतरंज..तुम मुझको सिखा जाते,
इस खेल में कम से कम..तुम मुझको जिता जाते।

तेरे प्यार की बाजी में..दिल हार चुकी थी मैं,
इक बार जीतने का..मौका तो दिला जाते।

क्यों इस जग में तुमने..तन्हा मुझको छोड़ा,
इस से अच्छा तो तुम..मुझे जहर पिला जाते।

मेरे हर शब्दों में तुम..न हो के भी रहते,
इक अक्स दिखा अपना..अहसास करा जाते।

राहें हम दोनों की..कुदरत ने जुदा कर दी,
जाते जाते मुझको..मंजिल तो दिखा जाते।

जाते जाते तुमने..क्यों नजर मिलाई थी,
कैसे बीते जीवन..ये गुर तो बता जाते।।

 सूनी आंखों के संग..तन क्षीण हुआ मेरा,
लेने तुम आओगे..ये अलख जगा जाते।

ज़ख्मों में दर्द बड़ा.. "रजनी" भी हार रही,
काकुल आ के इक बार..जरा मरहम लगा जाते।

*कवयित्री : रजनी श्री बेदी
       ( जयपुर-राजस्थान)