कविता: प्रेम के रूप...
कविता: प्रेम के रूप...
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प्रेम है मरहम अगर तो प्रेम है कटार भी,
सुकून प्रेम छीनता तो प्रेम है करार भी।
प्रेम के चेहरों को कोई गिन न पाया आज तक,
प्रेम है गर ज़िंदगी तो प्रेम एक व्यापार भी।
प्रेम में गर छल भरा प्रेम में बल भी बहुत,
प्रेम में सन्यास भी तो प्रेम में श्रृंगार भी।
प्रेम हैं आँसू किसी के प्रेम में मुस्कान भी,
प्रेम मीराँ का ज़हर तो राधा का संसार भी।
राधा- श्याम मीरा- गिरधर रुक्मिणी भी कृष्ण की,
विभिन्न रंगों में रंगा कृष्ण का ये प्यार भी।
प्रेम में मासूमियत तो प्रेम में है वासना,
गंगा सा पावन अगर ये तो तन पर है प्रहार भी।
न पैसों से खरीद पाया आजतक कोई इसे,
प्रेम तन-मन का समर्पण दिल जले की खार भी।
प्रेम श्रद्धा प्रेम भक्ति है प्रेम में हर जीव भी,
रूहानियत से भरा प्रेम प्रकृति का उपहार भी।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
जयपुर ( राजस्थान )