कविता : सकारात्मकता
कविता : सकारात्मकता
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करके अन्त तिमिर का, जब भोर नई आएगी।
खुशियों भरी रागिनी, किलकारियाँ सुनाएगी।
आखिर तो बीत जाएगा,ये कठिन दौर एक दिन।
बिखरे हुए फूलों की माला, फिर से गूंथी जायेगी।
पश्चाताप के शज़र,लगा दें गर गली-गली।
आने वाली नस्लों को, वबा न फिर सताएगी।
ज़र्रा-ज़र्रा महकेगा बस, हौसलों की महक से।
दुनिया की आबो हवा में, इंसानियत घुल जायेगी।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी (जयपुर-राजस्थान )