कविता : चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं ...

कविता : चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं ...

कविता : चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं ...

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चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं
भेष बदलकर सारे देवी-देवता आए हैं,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

सुर नर मुनि सब आए हैं अवधपुर,
राम नाम गूंजे सारी अवध नगरिया,
घट-घट वासी अविनाशी भी निहारि रहे,
इंद्रपुरी भी लजाए देखि के डगरिया,
योगी,ढोंगी,रोगी,भोगी,सगरे विरक्त हुए,
कण-कण में बसे सिया जी के संवरिया,
प्रभु मुसकान,हाथ में धनुष बान,ध्यान,
बालरूप देखि, लागि जाए न नजरिया,

कलयुग में त्रेता युग वाली छवि बरसाए है,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

धन्य धन्य सरयू हुई हैं आज तट देखि,
काशी छोड़ि धूनी भोले बाबा जी रमाए हैं,
द्वारिका के नाथ लेके राधाजी को साथ देखो
पापनाशिनी के तीरे बांसुरी बजाए हैं,
मूस पे सवार,एकदंत महाराज आज,
लड्डुओं की थाल ले, चढ़ाने खुद आए हैं,
जगजननी के साथ,सारी दुनिया के नाथ,
चक्रधारी रामरूप देखि मुसकाए हैं,

जग के स्वामी फिर अपनी लीला दिखलाए हैं,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं
भेष बदलकर सारे देवी-देवता आए हैं,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

सुर नर मुनि सब आए हैं अवधपुर,
राम नाम गूंजे सारी अवध नगरिया,
घट-घट वासी अविनाशी भी निहारि रहे,
इंद्रपुरी भी लजाए देखि के डगरिया,
योगी,ढोंगी,रोगी,भोगी,सगरे विरक्त हुए,
कण-कण में बसे सिया जी के संवरिया,
प्रभु मुसकान,हाथ में धनुष बान,ध्यान,
बालरूप देखि, लागि जाए न नजरिया,

कलयुग में त्रेता युग वाली छवि बरसाए है,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

धन्य धन्य सरयू हुई हैं आज तट देखि,
काशी छोड़ि धूनी भोले बाबा जी रमाए हैं,
द्वारिका के नाथ लेके राधाजी को साथ देखो
पापनाशिनी के तीरे बांसुरी बजाए हैं,
मूस पे सवार,एकदंत महाराज आज,
लड्डुओं की थाल ले, चढ़ाने खुद आए हैं,
जगजननी के साथ,सारी दुनिया के नाथ,
चक्रधारी रामरूप देखि मुसकाए हैं,

जग के स्वामी फिर अपनी लीला दिखलाए हैं,
चलो अयोध्या भक्तों को हनुमान बुलाए हैं।

  * कवि : सुरेश मिश्र

( हास्य व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक - मुंबई )