गज़ल : ज़िन्दगी

गज़ल : ज़िन्दगी

         गज़ल : ज़िन्दगी

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ज़िंदगी तो आँच का है, इक समंदर देखिये, 
इसके उठने और गिरने का भी मंज़र देखिये। 

साँस की डोरी सलामत, तो सलामत है जहाँ, 
किस घड़ी थम जाएँ साँसे, तन ये नश्वर देखिये। 

मौत से डरकर सिहर जाएगी, इक दिन ज़िंदगी, 
जब चुभेगा उसका ये, तीखा सा खंजर देखिये। 

साथ कुछ जाता नहीं है, क्यों करें फिर हम गुमां, 
छूट जायेगा कमाया, सब यहीं पर देखिये। 

मिल्कियत नेकी की ही तो, है वहाँ सबसे बड़ी, 
काम कुछ आता नहीं ये, लाव- लश्कर देखिये। 

कुछ निज़ामों की निज़ामत धूल में मिलती दिखी, 
लुट चुके जब तब बचा, कोई न रहबर देखिये। 

' भावना ' अच्छी हमारी और नीयत साफ हो, 
रास्ते हों नेक  तो बनता  मुकद्दर देखिये। 

* रचनाकार : भावना मेहरा
                        ( आगरा )