गोल रोटी
गोल रोटी
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शादी के 33 वर्ष बाद.. आज गोल गोल रोटी बनाते हुए लगा,रोटी गोल ही क्योँ?
माँ की नसीहत याद आयी कि रोटी गोल बनाना सीखो।
फिर मुझे अपनी नसीहत याद आयी जो मैंने अपनी बेटियों को भेड़ चाल की तरह दी।
रोटी गोल बनाया करो, ससुराल जाना है।
पर अनायास मेरे मुँह से निकला,
क्या आड़ी तिरछी रोटी से पेट नहीं भरता ?
दिखावा.…....किसे और क्योँ?
हम जैसे घटिया लोगों की वजह से जो बहू के रोटी गोल न बनाने पर ताने मारते हैं।
या वो घटिया रिश्तेदार जो खाना भी खाते हैं और ताने भी मार कर चले जाते हैं, किसी और शिकार की तलाश में।
पीछे छोड़ जाते हैं, कोहराम...
जिस बहू ने घंटों लगाकर लज़ीज़ खाना बनाया था, एक तिरछी रोटी की वजह से बेस्वाद कर जाते हैं और उसके भूखे पेट में आंते उबलती रहती हैं,जो आँखों मे आये सैलाब से न जाने कब शांत हो जाती है....।
पता ही नहीं चलता ये सब होते-होते इन बातों के दीमक से....
कब बहू ढह जाती है।
तानों से जल जाती है।
शर्म से डूब जाती है।
अधर झूल में लटक जाती है।
न कह पाती है।
न सह पाती है।
क्या औरत का अस्तित्व गोल रोटी पर टिका है ?
सच सच बताना...... कि टेढ़ी -मेढ़ी रोटी से आपका पेट नहीं भरता क्या......?
किस समाज में आपकी बेइज़्ज़ती होगी।
वो समाज जो हम जैसे लोगों से निर्मित है।
जहाँ कभी हम तमाशे के पात्र होते हैं और कभी तमाशबीन।
तो फिर ये नाक कब कौन किसकी काट जाता है ?
कभी सोचिए.....
इस गोल रोटी के पीछे छिपी है, न जाने कितनी मौन आशाएं।
* लेखिका : रजनी श्री बेदी
( जयपुर-राजस्थान)