कजरी : देशवा बुलावतानी हो
कजरी : देशवा बुलावतानी हो **********************
परदेसी संदेश हौं पठावतानी।
देशवा बुलावतानी हो।।
काली बदरी के भीत,लिखतानी हम गीत।
मीत तहरा बिना -2
सावन बितावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
पतझड़ फाग बसंत,नाहिं आयो मोरे कंत।
अंत सावन कै -2
तहरा जतावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
झूमका नथनी औ बिंदिया, नाहीं चाही हमका तिजिया।
निंदिया आवे ना-2
काहे के सतावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
नैना सोहै नाहीं कज़रा,नाहीं केशिया में गज़रा।
नज़रा लागे नाहीं -2
तनवां बचावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
सखी रंगावेली रंगना,रहि-रहि खनकेला कंगना।
अंगना सूना लागे-2
मेंहदी रचावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
तीज़ कजरी सुम्मार,बाटे बड़का इतवार।
तार समुझ दीप -2
व्रत हौं उठावतानी,देशवा बुलावतानी हो।।
परदेसी संदेश हौं पठावतानी,
देशवा बुलावतानी हो।।
* कवि : विनय शर्मा दीप ( मुंबई )