कजरी : पिया लइके चला भोले के दरबार मा ...
कजरी : पिया लइके चला भोले के दरबार मा, सावन की बहार मा न
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आज सावन का तृतीय सोमवार है।यूं तो पूरे सावन भर हर दिन भोले बाबा का दिन होता है। शिवालयों में जलाभिषेक होता है, भक्तों की कतारें लगीं होती हैं। मगर सोमवार का दिन अत्यंत पुण्यदाई होता है। प्रियतम परदेश गए हैं। नायिका का दिल भी काशी जाकर जलाभिषेक करने के लिए आतुर हो उठा है। उसने अपने प्रियतम को फोन लगाया और बोली-
पिया लइके चला भोले के दरबार मा
सावन की बहार मा न।
काशी वाले विश्वनाथ
जे अनाथ के बा नाथ
गंगाजल चढ़उबइ लगि के हम कतार मा
सावन की बहार मा न
पिया लइ के ------------
ज्योतिर्लिंग बा निराला
सब क भावइ डमरू वाला
बिष का प्याला पीके मस्त बा पहार मा
सावन की बहार मा न।
पिया लइके ------------
धूनी भस्म कइ रमाए
माला सर्प की लटकाए
सगरा पाप मिटे गंगा जी की धार मा
सावन की बहार मा न
पिया लइके ------------
काशी वासी कइ नगरिया
भक्त से भरल डगरिया
लोग मगन हउवें सोम के विचार मा
सावन की बहार मा न।
पिया लइके --------------
जे भी जाए ओनके धाम,
उहां सब क बने काम
हे पिनाकी तोहरी धूम बा संसार मा
सावन की बहार मा न।
पिया लइके --------------
वीरभद्र,हे महेश्वर,
महाकाल,शिव, दिगंबर
नामदेव नाचें भक्तवन के प्यार मा
सावन की बहार मा न
पिया लइके -------------
शूलपाणी हैं अनंत,
वो ही योगी,वो ही संत
सारा पुण्य छुपल बाटइ सोमवार मा
सावन की बहार मा न
पिया लइके ---------------
घंटा बाजे हर शिवाला
आवा सासू मां के लाला
पिय सुरेश कहां फंसल हउ लबार मा
सावन की बहार मा न
पिया लइके चला भोले के दरबार मा
सावन की बहार मा न।
* कवि : सुरेश मिश्र
( मुम्बई )