कोविड-19 के बाद बुजुर्गों में अल्जाइमर्स का जोखिम बढ़ा !
कोविड-19 के बाद बुजुर्गों में अल्जाइमर्स का जोखिम बढ़ा !
* हेल्थ डेस्क
मुंबई : कोविड के बाद की दुनिया में एक और महामारी का असल और मौजूदा खतरा है, जो चुपचाप उभर कर सामने आ रहा है। हाल में किये गये शोध से पता चलता है कि कोविड संक्रमण होने के कारण बुजुर्गों में अल्जाइमर्स का जोखिम महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ जाता है। जर्नल ऑफ अल्जाइमर्स डिजीज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कोविड-19 से संक्रमित बुजुर्गों को एक साल के भीतर अल्जाइमर्स रोग होने का जोखिम 50 से 80 प्रतिशत ज्यादा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बीमारी का सबसे ज्यादा जोखिम 85 वर्ष या इससे अधिक आयु की महिलाओं में देखा गया।
वर्ल्ड अल्जाइमर्स डे पर अपनी बात रखते हुए, पद्मश्री विजेता और डॉ. बत्राज ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक एवं चेयरमैन डॉ. मुकेश बत्रा ने कहा, “अपने 50 साल के होम्योपैथी कॅरियर में मैंने देखा है कि लोगों ने अल्जाइमर्स को बहुत हद तक गलत समझा है। यह जानलेवा हो सकता है, लेकिन सही समय पर यदि सही हस्तक्षेप किया जाए तो मरीज सुरक्षित हो सकता है। अल्जाइमर्स के लिये होम्योपैथी के इलाज हर व्यक्ति के हिसाब से कस्टमाइज किये जाते हैं। यह एक संपूर्ण अप्रोच है, जो बीमारी के मूल कारण के इलाज में सहायता करता है। होम्योपैथी को अपनाने के अलावा, जीवनशैली में स्वास्थ्यकर बदलाव किये जा सकते हैं, ताकि संज्ञानात्मक स्वास्थ्य और कुल मिलाकर अच्छी सेहत को बढ़ावा मिले।”
अल्जाइमर्स रोग में व्यक्ति की सोच, व्यवहार और रोजमर्रा के काम करने की योग्यता प्रभावित होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को अल्जाइमर्स है और पूरी दुनिया में कम से कम 4.4 करोड़ लोगों को यह बीमारी है। इस बीमारी का नाम डॉ. एलोइस अल्जाइमर के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1906 में इसकी खोज की थी।
शुरूआत में अल्जाइमर्स के लक्षण हल्के होते हैं और समय बीतने के साथ यह तेज होते जाते हैं। आमतौर पर इसके शुरूआती लक्षण हैं याद न रहना और रोजमर्रा की चीजों के लिये सही शब्द खोजने में कठिनाई होना। इस बीमारी से जुड़ा एक आम मिथक यह है कि इससे केवल बुजुर्ग लोग पीड़ित होते हैं। हालांकि, डाटा कुछ और ही कहता है- युवा वयस्क भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी व्यक्ति को कई कारणों से अल्जाइमर्स हो सकता है, ये कारण अनुवांशिकी, जीवनशैली और पर्यावरण से संबंधित हो सकते हैं।