कविता : "बांधूं तुम्हें प्रीत की डोर"  

कविता : "बांधूं तुम्हें प्रीत की डोर"  

कविता : "बांधूं तुम्हें प्रीत की डोर"      

              ******************

 बांधूं तुम्हे प्रीत की डोर भैया,
कभी न टूटे ऐसी गांठ भैया। श्रावण मास की पूर्णिमा आई,भाई बहन के प्यार का बंधन साथ में लाई।
भाई-बहन का प्यारा नाता, 
अपनेपन से भरा यह नाता।
एक-दूजे के सुख-दुःख के साथी हम,
नि:स्वार्थ स्नेह की परिभाषा हम।
एक घर में जन्मे, साथ-साथ पले बढ़े हम,
मां-बाबा की आंखों के तारे हम।

सज धज कर थाल सजाकर भाई के घर जाती बहन,
भाई के भाल पर तिलक लगाती बहन।
आशीर्वादों की बौछारें
निछावर करती बहन,
भाई के लिये ईश्वर से ढ़ेरों प्रार्थनाएं करती बहन।    रक्षा का वचन देता भाई, साथ में ढेरों उपहार भी देता भाई।
भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना ,
इस रिश्ते को अंतिम सांस तक निभाना।            

* रचनाकार : डॉक्टर मंजू ‌‌लोढ़ा‌‌‍‌
( कवयित्री एवम् समाजसेवी) मुंबई