गज़ल : प्रश्न ...

गज़ल : प्रश्न ...

       गज़ल : प्रश्न ...

       ***********

कजा की आँधियाँ कब तक चिरागों को बुझाएंगी,
बची जो लाश ज़िन्दा हैं उन्हें कब तक रुलाएंगी।

कहर की लहर है आयी लगा दो अब तो तुम पहरा,
ख़ुदा तेरी सज़ाएँ कब तलक सबको सताएँगी।

बर्फ सी देह ज़िन्दा है वो पिघलेगी मगर कैसे,
बहा कर खून के आँसू वो अपनी रूह गलाएंगी।

अस्थियाँ कब तलक आँखों की गंगा से बहाएं हम,
ज़हर बन के ये यादें जो बचे उनको जलाएंगी। 

गोद सूनी मांग सूनी बिलखती राखियाँ कितनी,
बिना रिश्तों के अब त्योहार ये कैसे मनाएंगी।

मकां को घर बनाने में बिता दी उम्र सब अपनी,
न सोचा था मिटाने में बलाएँ  पल लगाएंगी।

बिना कांधे बिना ही कफ़न के रुखसत हुए अपने,
ये मंज़र देख के आंखें ये ग़म कैसे भुलाएँगी।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
      ( जयपुर-राजस्थान)