कविता : मेरा झुका सर और उसका कंधा...
कविता : मेरा झुका सर और उसका कंधा...
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मेरा झुका सर और उसका कंधा
मेरी मायूसियों का सहारा उसका कंधा
खामोशियों की जुबान
सिसकियों की कहानी
उसका दिलासा उसका कंधा मेरा झुका सर और उसका कंधा ।
लड़ता रहता हूं खुद से
जलता रहता हूं खुद में
मेरी मुश्किलें ,बंदिशें मेरी चुनिंदा
मेरा झुका सर और उसका कंधा ।
ख़ुद से लड़ाई बाहर जंग
हालात नाज़ुक राह तंग
जिंदगी के उतार चढ़ाव
और हमेशा वो मेरे संग
बिन कहे सब समझे, उसका कन्धा
मेरा झुका सर और उसका कंधा ।
नाकामियों का बोझा जब ढ़ो ना पाएं
रुआँसी जो अंदर ही रह जाए
उम्मीदें हमेशा टूट जो जाएं
देखते ही वो समझ जाए
आंसुओं से मेरे गीला उसका कन्धा
मेरा झुका सर और उसका कंधा ।
वक्त का कोई भी हो सवाल
जैसा भी मेरा हो हाल
'सब ठीक होगा'
रटा हुआ उसका ये जबाब
माँ का होना भी है सबाब
मेरे हर मर्ज का इलाज उसका कन्धा
मेरा झुका सर और उसका कंधा ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )