कविता : चलो बात करते हैं
कविता : चलो बात करते हैं
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चलो बात करते हैं
कुछ तुम शिकायत करो
कुछ गिला करते हैं
चलो साथ चलते हैं
चलो बात करते हैं ।
बातें बहुत होती हैं
पर बात कहां होती है
कुछ तुम रुक जाते हो
कुछ मेरी जुबां लरज जाती है
कहां शब्द जज्बात बन पाते हैं
कहां हर आह सुनाई जाती है
चलो आज वादा करते हैं
चलो नैनो की जुबां पढ़ते है
चलो बात करते हैं।
तुम मेरी धड़कनों की तरन्नुम सुनो
मैं तेरी आंखों से तकरीरें लिखूं
कभी तुम मुझ में समा जाओ
कभी मैं तुम में घुल जाऊं
काश कोई ऐसा भी रोज आए
तुम मुझ सी हो जाओ
मैं तुम सा हो जाऊं
चलो एक दूजे सा होके एक दूजे सा एहसास करते हैं
और वो पहले से गिले शिकवे करते हैं
चलो बात करते हैं।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )