कविता :  मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं...                 

कविता :  मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं...                 
राजेश कुमार लंगेह

कविता : 

मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं...                       ********************

मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं 
हुनरमंद हूँ आज तक शायद इसलिये 
कहां मांगी कभी उधार की शोहरत मैंने 
नहीं भूला हुआ गिरकर उठना शायद इसीलिये 
हिम्मत हैं पत्थरों से टकराने की 
चीरकर सीना दरिया लाने की 
टूटकर बिखरकर तबाह हो भी जाऊँ 
उम्मीदें जिंदा रहेंगी सदा के लिए 
मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं
हुनरमंद हूँ आज तक शायद इसलिये 


बेवजह कभी उलझा नहीं 
मतलब के लिए कभी पिघला नहीं 
क्या करना गैरों के महल चौबारे को 
दिल में सुकून जिंदा है शायद इसीलिये 
मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं 
हुनरमंद हूँ आज तक  शायद इसलिये 


अपनी मशक्कत से ही टूटने है पहाड़ 
खत्म होंगे सारे खौफ जब गूंजेगी मेरी दहाड़
हाथों के छालों की परवाह नहीं मुझे
नसों में बह रहा है ख़ून लड़ने के लिये 
मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं 
हुनरमंद हूँ आज तक शायद इसलिये


हुनर है मुझमे ख़ुद को बदलने का 
आँखों में डालकर आंखें सच का सामना करने का 
मेरे होने ना होने का एहसास होता है सबको शायद इसीलिये 
मेरे पैरों ने उड़ना अभी छोड़ा नहीं 
हुनरमंद हूँ आज तक शायद इसलिये
कहां मांगी कभी उधार की शोहरत मैंने 
नहीं भूला हुआ गिर कर उठना शायद इसीलिये

* रचनाकार :  राजेश कुमार लंगेह                                               ( जम्मू )