होली पर प्रासंगिक कविता : हम जैसी होली खेलो....
होली पर प्रासंगिक कविता :
हम जैसी होली खेलो....
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हम जैसी होली खेलो
रंग वतन की मुहब्बत का
अंग अंग पर डालो
उठा कर शमशीर सर दुश्मनों का काट डालो
हम जैसी होली खेलो
रंग वतन की मुहब्बत का
अंग अंग पर डालो।
भर मुट्ठी मिट्टी माथे पर लगा लो
सोंधी सी धरती की खुशबु सांसों में बसा लो
फिर रंग पक्का रिश्ता सच्चा सदियों तक निभा लो
हम जैसी होली खेलो
रंग वतन की मुहब्बत का
अंग अंग पर डालो ।
हजारों रंग के संग हैं साथी
कोई सिख कोई ईसाई
सबके माथे पर तिरंगा रंग
हिन्दू होली खेले मुस्लिम भाई संग
कौन हिन्दू कौन मुस्लिम पहचान सकते हो तो पहचान लो
हम जैसी होली खेलो
रंग वतन की मुहब्बत का
अंग अंग पर डालो।
सिपाही की हर पल होली है
हर रोज जलाता होलिका
बचाता प्रहलाद को
सरहदों की रखवाली पर भरोसा देश को
देशप्रेम का गीत सिपाही संग तुम भी गा लो
हम जैसी होली खेलो
रंग वतन की मुहब्बत का
अंग अंग पर डालो ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( सेकंड इन कमांड , एन एस जी)