कहानी  : एहसास !

कहानी  : एहसास !

कहानी  : एहसास !
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  कादंबरी एक बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी , चार भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी थी । अपने सारे भाई बहनों का वह बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी ।
" कादंबरी बेटा , आज तुम कॉलेज जाओगी तो अपनी बहन का फीस भी लेते जाना , और अपनी  फीस भी भर देना " कादंबरी की मां उसके हाथ में फीस के रुपए पकड़ाते हुए बोली थी।
" हां, ठीक है मां , मैं फीस भर दूंगी" रुपए थामते  हुए कादंबरी ने कहा था फिर अपनी बहन के साथ कॉलेज जाने के लिए निकल गई ।
कॉलेज पहुंचने के बाद उसकी बहन अपनी क्लास में चली गई।   अविनाश उसे बाहर ही मिल गया " कादंबरी सुनो, मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है , तुमने अभी तक अपने मम्मी- पापा से हमारी शादी के बाद नहीं की ? " अविनाश ने गुस्से में कादंबरी से पूछा था ।
" अविनाश... नाराज मत हो , तुम बात को समझो । ऐसी बातें घर के बड़े करें तो ज्यादा अच्छा रहता है , तुम अपने मम्मी- पापा को हमारे घर क्यों नहीं भेज देते? " कादंबरी अविनाश को समझाते हुए बोली थी ।
" ठीक है मैं आज ही अपने मम्मी पापा से घर जाकर बात करता हूं " अविनाश ने कादंबरी से कहा, 
फिर दोनों अपनी-अपनी क्लास  में चले गए ।
  दूसरे दिन अविनाश अपने माता-पिता से सारी बात बताता है , उसके माता-पिता,  कादम्बरी के घर शादी की बात करने के लिए जाने को तैयार हो गए।
  कादंबरी के मां पिताजी ने भी अविनाश को देखा। उन्हें लगा लड़का , घर, परिवार सब अच्छा है। तब उन्होंने सोचा अविनाश और कादंबरी का विवाह चलो कर देते हैं !
  और फिर धूमधाम के साथ कादंबरी और अविनाश की शादी करवा दी गई ।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था , जिंदगी हंसी खुशी व्यतीत हो रही थी। तभी एक दिन एक भयानक घटना घटी। अविनाश और कादंबरी अपनी गाड़ी से कहीं घूमने जा रहे थे कि अचानक से गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया । अविनाश तुम गाड़ी ठीक से चला लो , देखो सामने से ट्रक आ रही है " कादंबरी  घबराते हुए बोली थी।
" चुप हो जाओ यार , तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा कितनी कोशिश कर रहा हूं मैं , जब इसका ब्रेक फेल हो चुका है तो मैं क्या कर सकता हूं " परेशान होकर अविनाश ने झुंझलाते हुए कहा था ।
बहुत कोशिश के बाद भी अविनाश अपनी गाड़ी को नहीं बचा पाया और गाड़ी सामने से आ रही ट्रक से जा टकराई ।

उस भयानक "एक्सीडेंट " की बाद से तो अविनाश की जिंदगी में बदल गई । अविनाश को तो ज्यादा चोट नहीं आई थी , पर कादंबरी जो उसकी बगल में बैठी थी उसे बहुत ज्यादा चोट लगी थी। डॉक्टर ने यहां तक कह दिया कि "कादंबरी अब कभी भी मां नहीं बन सकती है।"
" डॉक्टर साहब कोई बात नहीं , हमारे बच्चे बच गए यही बहुत है " अविनाश के पिताजी ने डॉक्टर से कहा था ।
धीरे-धीरे दोनों ठीक होने लग गए थे , वे हॉस्पिटल से घर आ गए थे , पर उस हादसे के बारे में भूल नहीं पा रहे थे।
    मां तो मां होती है । एक दिन अविनाश की मां अपने बेटे को अपने कमरे में बुलाकर बोली " बेटा देख , कादंबरी अब कभी  मां नहीं बन सकती है ।परिवार आगे बढ़ाना तो है ही। तुम एक काम करो दूसरी शादी कर लो ....."
" अरे मां ,  कैसी बातें कर रही हो? परिवार आगे बढ़ाने के लिए हम कोई बच्चा गोद भी तो ले सकते हैं।आज के समय में बहुत कुछ उपाय है " अविनाश ने अपनी मां को समझाया।
पर उसकी जिद पर पकड़े हुई थी  हुई थी । फिर अविनाश ने भी अपना खाना- पीना भी त्याग दिया और गुस्से में जाकर अपने कमरे में सो गया ।
अपने बेटे की हालत देखकर उसकी मां को बहुत अफसोस हुआ , उन्हें अपने फैसले पर शर्मिंदगी भी हो रही थी। उन्हें दिल से"एहसास" हो रहा था कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है। इस तरह की बातें करके मैंने अपने बेटे के दिल को चोट पहुंचाई है।
और इसी" एहसास" के साथ जाकर उन्होंने अपने बेटे और बहू कादंबरी से माफी मांगी।

 * लेखिका : कविता सिंह  (नोएडा )