मर्मस्पर्शी कहानी:आत्मसम्मान!
कहानी : आत्मसम्मान !
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"शिल्पी बेटा तुम कब आई कॉलेज से? "बेडरूम का दरवाजा खोलते ही शिल्पी की मां ने चौंक कर पूछा।
"मां ,मुझे आए तो आधे घंटे हो गए ,आप किचन में काम कर रहीं थी इसलिए बिना आपसे बात किए मैं बेडरूम में आ गई..."
"अच्छा कोई बात नहीं तुम हाथ - मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं। कहकर उसकी मां खाना लाने चली गई।
शिल्पी फिर से ख्यालों की दुनियां में खो गई। वह मन ही मन सोचने लगी "आखिर अनन्या ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? जबकी उसको सच पता था हमारी और कार्तिक की "इंगेजमेंट" हो चुकी है ! क्या दोस्ती ऐसी होती है? दोस्त ऐसे होते हैं?"
दरअसल छः महीने पहले कार्तिक और शिल्पी की सगाई हुई थी। उस दिन पूरा घर बहुत खुश था आखिर उनकी बेटी के पसंद के लड़के से उसकी सगाई होने वाली थी ।
शिल्पी को दुल्हन की तरह सजाया था उसकी कॉलेज की फ्रेंड अनन्या ने!
पर सगाई के समय कार्तिक की निगाहें शिल्पी को छोड़ कर "अनन्या" के ऊपर टिंकी हुई थीं।
अनन्या , शिल्पी से ज्यादा खूबसूरत थी ,इसलिए कार्तिक की नजरें जब उसके ऊपर पड़ीं तो वो वह उसे एक टक देखता ही रह गया था।
फिर वहीं से दोनों के बीच बात _चीत का सिलसिला चालू हुआ!
कुछ ही दिनों में दोनों में काफी अच्छी दोस्ती हो गई और फिर मिलने _जुलने का सिलसिला भी चलने लगा।
"कार्तिक देखो अब बहुत हुआ,तुम शिल्पी के घरवालों को साफ_ साफ मना कर दो कि तुम उससे शादी नही करना चाहते।
"अनन्या" झल्लाते हुए कार्तिक से बोली थी।
"बस इतनी सी बात से परेशान हो तुम? मैं कल ही उन लोगों से बोल दूंगा ,तुम्हारी खुशियों के लिए कुछ भी कर सकता हूं..."
कार्तिक ने हंस कर कहा था।
दूसरे दिन सुबह मोबाइल की घंटी बजी..
"शिल्पी" तेरे लिए फोन है..." उसकी मां ने आवाज लगाई , शिल्पी शर्माते हुए फोन उठाया ही था कि कार्तिक बोल पड़ा...
" देखो शिल्पी , आज मैंने
तुमसे बात करने के लिए कॉल नहीं किया है,मुझे तुम्हारे घरवालों से बात करनी है ।"
इधर बेचारी शिल्पी इन सारे साजिशों से बेखबर थी। उसने अपनी मां को आवाज लगाई, जैसे ही उसकी मां फोन लिया कार्तिक ने कहा "आंटी,मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी हैं,बिना बात को घुमाए मैं बोलना चाहता हूं कि मैं आपकी लड़की को पसंद नहीं करता इसलिए मुझे ये शादी नही करनी है......"
"अरे बेटा आखिर हुआ क्या? इतना बड़ा फैसला तुम कैसे ले सकते हो" उसकी मां परेशान हो कर पूछने लगी!
" मेरा फैसला है,मुझे शादी नहीं करनी है, बात खत्म..."
ये सब सुनने के बाद तो शिल्पी की दुनियां ही जैसे थम सी गई थी ,वो जैसे जिंदा लाश बन कर रह गई हो।आखिर कोई इतना बुरा कैसे कर सकता है समझ ही नहीं पा रही थी..
फिर उसने अपनी कॉलेज की सहेली "अनन्या " को फोन किया और रो_ रो कर उसे सारी बात बताई। पर वो तो बिल्कुल नॉर्मल तरीके से उसकी बातें सुनीं जा रही थी। और उसको बुरा न लगे इसलिए बीच बीच में बोले जा रही थी "ओह, उसने बहुत बुरा किया तेरे साथ ,भगवान उसको कभी माफ नहीं करेंगे ।"
कुछ दिन बीत जाने के बाद शिल्पी भी इन सब बातों को भूलने की कोशिश करने लगी अब वो कॉलेज भी जाने लगी।
पर अब उसे "अनन्या" के व्यवहार में काफी बदलाव दिखने लगा था। एक दिन अचानक कॉलेज से निकलने के बाद गेट पर उसने देखा कार्तिक बाइक लगा कर खड़ा था!
शिल्पी उसकी पास आकर बोली " तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया"?
" क्यों कि मैं तुम्हें नहीं बल्कि अनन्या को पसंद करता हूं, कार्तिक ने गुस्से में कहा था। पास ही खड़ी अनन्या दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा रही थी!
"अनन्या तुम तो दोस्त थी ना ?ऐसी होती है क्या दोस्त?
लानत है तुम्हारी जैसी दोस्त पर और तुम्हारी दोस्ती पर बोलते हुए रोने लगी और बिना एक सेकंड रुके अपने घर के तरफ बढ़ गई।
पर काफी दिन बीत जाने के बाद भी वो उस षडयंत्र को भूल नही पा रही थी ।
अभी भी शिल्पी उन बातों को सोचकर रोए जा रही थी तभी अचानक से उसकी मां की आवाज कानों में गूंजी
" तू अभी भी उन नीच लोगों के बारे में सोच कर आंसू बहा रही हो?"खाना टेबल पर रखते हुए उसकी मां बोली फिर शिल्पी अपनी मां के सीने से लिपट कर फूट-फूट कर रोई ।
मां उसे समझाने लगी "बेटा जब हमारी अपनी मर्जी की चीजें हमें नहीं मिलती तो समझ लो ऊपर वाला तुम्हारी सोच से कहीं बेहतर कुछ और बेहतर तुम्हारे लिए तय कर रखा है,इसलिए फैसला उनके हाथों में छोड़ दो। आत्मसम्मान से बड़ा कोई रिश्ता दुनियां में नहीं होता।"
* लेखिका : कविता सिंह
( नोएडा )