दशहरा पर शस्त्र पूजा से जुड़ी प्रासंगिक कविता : हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं
दशहरा पर शस्त्र पूजा से जुड़ी प्रासंगिक कविता : हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं ....
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राम, बिना धनुष के राम नहीं
चक्र बिना कृष्ण भगवान नहीं
ना हो त्रिशूल तो कहाँ भोला शिव है
हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं ।
शस्त्र , शास्त्र का निर्माता है
कायरों का अच्छा वक़्त कहां आता है
शस्त्र नहीं तो तन में जान नहीं
हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं ।
जीवन में ऊर्जा है स्फूर्ति है
तलवार बिना विजय कहाँ छूती है
रगों में बहता रक्त शान नहीं
हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं।
हथियार से ताकत दुगनी है
हथियार ही अमन की जननी है
हथियार बिना सरहदों की आन नहीं
हथियार बिना वीर को कहीं सम्मान नहीं।
* कवि : राजेश कुमार लंगेह
( बीएसएफ )