सांसद गोपाल शेट्टी ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक राशि वसूलने को लेकर सदन में पूछा सवाल : स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने दिया ये जवाब 

सांसद गोपाल शेट्टी ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक राशि वसूलने को लेकर सदन में पूछा सवाल : स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने दिया ये जवाब 

सांसद गोपाल शेट्टी ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक राशि वसूलने को लेकर सदन में पूछा सवाल :  स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने दिया ये जवाब 


* अमित मिश्रा

       नई दिल्ली : निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों से  अधिक राशि वसूले जाने को लेकर उत्तर मुम्बई के सांसद गोपाल शेट्टी ने सदन में तारांकित प्रश्न उपस्थित किया। उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री से पूछा कि क्या स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि....
(क) क्या सरकार ने निजी अस्पतालों द्वारा रोगियों को लूटे जाने और छोटे उपचारों के लिए भी उनसे लाखों रुपये की अत्यधिक राशि वसूले जाने की शिकायतों पर ध्यान दिया है;
(ख) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है तथा
(ग) विगत तीन वर्षों के दौरान ऐसी कितनी शिकायतें प्राप्त हुई हैं और इस संबंध में राज्य/संघ राज्यक्षेत्र-वार क्या कार्रवाई की गई है।
 (घ) क्या सरकार का निजी अस्पतालों द्वारा इस प्रकार के अधिक राशि वसूले जाने को विनियमित/प्रतिबंधित करने के लिए कोई निगरानी तंत्र स्थापित करने का विचार है; और
(ङ) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?

    सांसद  गोपाल शेट्टी के इन सवालों के जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने स्पष्ट किया कि प्रावधानों के अनुसार, स्वास्थ्य राज्य का विषय है। यह संबंधित राज्य / संघ राज्य क्षेत्र का उत्तरदायित्व है कि वह निजी स्वास्थ्य परिचर्या प्रतिष्ठानों द्वारा अधिक प्रभार वसूली के मामलों का संज्ञान लें और इस तरह की प्रथाएं रोकने और नियंत्रित करने के लिए कार्रवाई करें। ऐसी शिकायतें जब भी प्राप्त होती हैं इन्हें संबंधित राज्य/ संघ राज्य क्षेत्र की सरकार को भेज दिया जाता है, जो तत्संबंधी राज्य/ संघ राज्य क्षेत्र में लागू अधिनियमों और नियमों के उपबंधों के अनुसार अस्पतालों/ क्लिनिकल प्रतिष्ठानों को विनियमित करती है। इस तरह की शिकायतों का ब्यौरा केंद्र द्वारा नहीं रखा जाता है।
  उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार ने चिकित्सा की मान्य पद्धतियों (अर्थात एलोपैथी, योग, नैचुरोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्ध और यूनानी पद्धति या केंद्र सरकार द्वारा मान्य चिकित्सा की कोई अन्य पद्धति) से संबंध रखने वाले सरकारी (सशस्त्र बलों को छोड़कर) और निजी क्लिनिकल प्रतिष्ठानों के पंजीकरण और विनियमन का प्रावधान करने के लिए क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 (सीई अधिनियम) अधिनियमित किया है और इसके तहत क्लिनिकल प्रतिष्ठान (केंद्रीय सरकारी) नियम, 2012 अधिसूचित किया है। जिन राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों ने सीई अधिनियम अपना है वे रोगियों को वहनीय और गुणवत्तापरक स्वास्थ्य परिचर्या का प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए इस धेनियम और इसके तहत बने नियमों के उपबंधों के अनुसार अपने सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी लिए प्राथमिक रूप से उत्तरदायी हैं। इस अधिनियम के अनुसार, क्लिनिकल कि वे सुविधाओं और सेवाओं के न्यूनतम मानकों, कार्मिक की नयूनतम अपेरि रखरखाव संबंधी शर्तों और केंद्र/ राज्य सरकार द्वारा जारी मानक उपचार वि करने तथा उनके द्वारा प्रभारित दरों को किसी स्पष्ट स्थान पर दर्शाने अधिनियम में कार्रवाई करने की शक्ति निहित है जिसमें इसके उपबंधों का तालों को विनियमित करने के तेष्ठानों से अपेक्षा की जाती है संख्या, रिकॉडों और रिपोटों के नेर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित अन्य शर्तों को पूरा करें। इस संघन करने पर जिला स्तर पर जिला अधीक्षक/ जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में पंजीकरण प्राधिकरण के मान से शास्तियां लगाना शामिल है।
  स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों को पहले ही सलाह दे रखी है कि वे वेब लिंक

http://clinicalestablishments.gov.in/WriteReadData/3181.pdf

पर दिए गए 'रोगियों के अधिकार और उनके प्रति उत्तरदायित्वों का चार्टर' (राष्ट्रीय क्लिनिकल प्रतिष्ठान परिषद द्वारा यथा अनुमोदित) के 'क्या करें और क्या न करें' का पालन करें ताकि क्लिनिकल प्रतिष्ठानों में निर्वाध और सौहार्दपूर्ण वातावरण सुनिश्चित करते हुए रोगियों की मूलभूत शिकायतों और चिंताओं का समाधान किया जा सके। चार्टर के अनुसार, रोगी को दवाएं प्राप्त करने या जांच कराने के स्रोत का चयन करने का अधिकार है और क्लिनिकल प्रतिष्ठानों को रोगियों पर उसी अस्पताल के औषधालय से दवाएं खरीदने का दबाव नहीं डालना चाहिए और यदि वे बाहर से कम दाम लागत पर दवाएं प्राप्त कर सकते हैं तो उन्हें करने दें।

सीई अधिनियम के तहत, पंजीकरण और चिकित्सा जारी रखने के लिए प्रत्येक क्लिनिकल प्रतिष्ठान से अपेक्षा की जाती है कि वह अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित शर्तों को भी पूरा करे:
-प्रदान की जाने वाली हर सेवा और उपलब्ध सुविधा के लिए प्रभारित दरों को रोगियों की सुविधा के लिए किसी स्पष्ट स्थान पर स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में प्रदर्शित करें।
-केंद्र/ राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए मानक उपचार दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करें। अभी तक, एलोपैथी में 227 चिकित्सा दशाओं, आयुर्वेद में 18 चिकित्सा दशाओं तथा सिद्ध में 100 चिकित्सा दशाओं के लिए मानक उपचार दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
-प्रत्येक प्रकार की चिकित्सा-प्रक्रिया और सेवा के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार से परामर्श करके निर्धारित और जारी की गई दरों की सीमा के भीतर ही दरें प्रभारित करें। इसके लिए, चिकित्सा प्रक्रियाओं की मानक सूची और लागत निर्धारण के लिए मानक सांचा अंतिम रूप से तैयार करके उन राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों के साथ साझा कर दिया गया है जहां यह अधिनियम लागू है।
  अभी तक, सीई अधिनियम, 12 राज्यों नामतः अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मिजोरम, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, तेलंगाना और 7 संघ राज्य क्षेत्रों (दिल्ली को छोड़कर सभी) द्वारा अपना लिया गया है।