विशेष लेख : परीक्षा का ये कैसा है डर ?

विशेष लेख : परीक्षा का ये कैसा है डर ?

विशेष लेख : परीक्षा का ये कैसा है डर ?

        परीक्षा का यह कैसा है डर,क्यों डरते हैं हम परीक्षा से, बचपन से परीक्षा को लेकर दिमाग में एक  हव्वा बिठा दिया जाता हैं, मानो परीक्षा नहीं हुई, जीवन मृत्यु का सवाल हो गया, माता-पिता अपनी सारी उम्मीदें बच्चों से लगा कर रखते हैं और प्रत्येक माता-पिता यही चाहते हैं उनका उनका बच्चा कक्षा में प्रथम आए, यदि प्रत्येक बच्चे कक्षा में प्रथम आए तो दूसरा और तृतीय कौन आएगा? स्कूली परीक्षा का इतना दबाव रहता है बच्चों पर कई बार बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं। कितना अच्छा हो जो हम बच्चों को यह समझायें कि पढ़ना जीवन के लिए क्यों  जरूरी है, किताबी  शिक्षा के साथ-साथ जीवन जीने की शिक्षा हमें बच्चों को देनी चाहिए। मैं अपने जीवन की घटना बताती हूं कि जब भी बोर्ड एग्जाम होती थी मैं बहुत तनाव में आ जाती थी और रोने लगती थी कि मुझे कुछ नहीं आता, तब मेरे पापा मुझे समझाते थे, बेटा इतना तनाव मत लो, कुछ नहीं आता कोई बात नहीं बस परीक्षा में जाकर बैठ जाओ, पेपर पर अपना रोल नंबर और नाम लिखकर आ जाना पर परीक्षा भवन में जरूर जाओ उससे मत घबराओ और बाबा का यह प्रोत्साहन मुझ में एक नई हिम्मत भरता और मैं हर परीक्षा को पास करती चली गई। विद्यालय की परीक्षा हो या विश्वविद्यालय की परीक्षा हो या जीवन की कोई भी परीक्षा बाबा की बातें आज भी कानों में गूंजती हैं और हर परीक्षा हंसते-हंसते पास कर लेती हूं। जरूरी है हम बच्चों के अंदर की जो वास्तविक प्रतिभा है उसे बाहर निकाले और उसे एक नया रूप दे तब  किसी भी विद्यार्थी को किसी भी तरीके की परीक्षा का डर नहीं  लगेगा।                        
* डॉक्टर मंजू ‌‌लोढ़ा‌‌‍‌ ( मुम्बई )