कविता : जिंदगी

कविता : जिंदगी

                 कविता : जिंदगी
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ज़िन्दगी संघर्ष है,इसको हराना सीखिए,
जब मिले मौका तो अपने पर फैलाना सीखिए।

गम दुखों को फेंक के चेहरे पर मुस्कान रख,
स्वर्ग अपनी ज़िंदगी को खुद बनाना सीखिए।

ख्वाहिशें न हो सकेँ तेरी मुकम्मल ग़म न कर ,
मुफ़लिसों की कर मदद जंग जीत जाना सीखिए।

जीने की वजह खत्म है गर सोच ले ये दिल कभी,
मसीहा बन अपाहिजों को तुम चलाना सीखिए।

गम के समंदर में क्यों खाते हो जब तब डुबकियाँ,
ज़ज़्बात अपने बाँट कर तुम तैर जाना सीखिए।

कल की चिन्ता में न करो आज को बर्बाद तुम,
आज इसी पल से तुम मुस्कुराना सीखिए।

 कफ़न में जेब तुमने क्या आज तक देखा कभी,
फालतू जमा है जो उसको लुटाना सीखिए।

मौत आनी है सभी को जानते हैं ये सभी,
तिरँगे में लिपट अंत हो, ताकत जगाना सीखिए।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
     जयपुर ( राजस्थान )