कविता : दुआ
कविता : दुआ
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ये दुआ है मेरी तू सलामत रहे,
बसे चाहे जहाँ,बस मोहब्बत रहे।
बददुआ इक भी तुझको,लगे न कोई,
रहे जब तक ख़ुदा ये नियामत रहे।
करे मुफ़लिस अमीरी में तू फर्क न,
सँग तेरे सदा ये लियाक़त रहे।
करे जब भी मोहब्बत तू सच्ची करे,
अलग मोहब्बत रहे,अलग तिजारत रहे।
तेरे वाणी हो मिश्री आखिरी सांस तक,
बने न बदजुबान,सँग शराफत रहे
कुछ खुदा सा तू बन सबके दिल मे बसे,
दे दुआ सब तुझे,न रियायत रहे
जब तक सूरज है,चन्दा है और तारे भी
कर नेकी ,न शिकवा शिकायत रहे।
*कवयित्री : रजनी श्री बेदी
(जयपुर-राजस्थान)