गज़ल : कमी सी है ...

गज़ल : कमी सी है ...

       गज़ल : कमी सी है ...

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शाम-ए- महफ़िल में कुछ..कमी सी है,
जाने क्यों आँख में.. नमी सी है।

लब मेरे यूँ ही.. मुस्कुराते हैं,
चाहे दिल में..मेरे ग़मी सी है।

शौक़ ए दीदार..अब ना हमको है,
आँख मुद्दत हुई ..जमी सी है।

वो जो बिछड़े थे..किसी मोड़ पे हम,
मोड़ उस पर ही ..जाँ थमी सी है।

लफ्ज़ आते हैं ..चले जाते हैं,
रूह अब रूह में..रमी सी है

पिघल न पाए ..दो दिल भी जहाँ,
वीरान 'रजनी'  ..वो ज़मीं सी है।

*कवयित्री : रजनी श्री बेदी (जयपुर-राजस्थान)