विनय शर्मा दीप की कलम से विशेष  कविता : एकता ....

विनय शर्मा दीप की कलम से विशेष  कविता : एकता ....

 विनय शर्मा दीप की कलम से विशेष  कविता ....

                      एकता ....

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चलो निर्माण करने हम चलें दिवाल जो टूटी।
बनाएं एकता का पुल यहां बदहाल जो फूटी।
मिलन हो जाए चौराहे पे कुछ ऐसा करें यदि हम।
सवर जाए सपन वर्षों से है अविराम जो रुठी।।

घरों में चमचमाहट और खुशियां बांटना होगा।
दिलों में दीप सा जगमग उजाला चाहना होगा।
यहां अपने सभी तो हैं पराया ना कभी समझो।
यही परिवार है अपना जो नियम पालना होगा।।

बनी दिवाल नफरत की उसे अब तोड़ना होगा।
कि बिखरे उन मणि के मोतियों को जोड़ना होगा।
पिरोएं इस तरह से हम सुनहरी हार बन जाये।
चमक फैले जहां में है जो बिखरा मोड़ना होगा।।

हमारा ध्येय है फिर से बने सोने सा वह भारत।
धरा पे एकता का स्वर सुनहरा सा लगे भारत।
फले-फूले ओ फूलवारी बग़ीचा रोपना होगा।
भरत भूमि विवेकानंद गौतम सा लगे भारत।।

गले तुमको लगाना चाहता हूं ऐ मेरे साथी।
मणि को मैं पिरोना चाहता हूं ऐ मेरे साथी।
बनेगी एकता कैसे मिले मंतव्य कुछ ऐसा।
ख़ुशी मैं ढूंढ लाना चाहता हूं ऐ मेरे साथी।।


* कवि : विनय शर्मा दीप

                     ( मुंबई )