बालकथा : अदब

बालकथा : अदब
कविता सिंह

           बालकथा : अदब

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        सुनंदा नामक महिला अपने पति अभिनव के साथ किसी शहर में रहती थी।
अभिनव एक सरकारी कार्यालय में नौकरी करते थे। सुनंदा घर संभालती थी और अपने 8 साल के बच्चे  कार्तिक की देखभाल करती थी।
कार्तिक (सुनंदा का बेटा) शादी के कई साल बाद दुनिया में आया था इसलिए सभी उससे बहुत ज्यादा प्यार करते थे ।
"कार्तिक आज तुम्हारी दादी और दादा जी गांव से आनेवाले हैं" सुनंदा ने अपने बेटे को बताया जिसे सुन कर कार्तिक बहुत खुश हुआ।
दूसरे दिन कार्तिक जब स्कूल से वापस अपने घर आया तो उसकी नजर" ड्राइंग रूम" में बैठे दादा जी और दादी जी पर पड़ी। वो स्कूल बैग दूसरी तरफ फेंक कर उनसे लिपट गया ।
"बेटा तुम काफी दिनों से गांव नहीं आए न?
कैसे आओगे जब तुम्हारे मम्मी ,पापा ही नहीं आते " उसकी बुजुर्ग दादी डबडबाई आंखों से उसकी तरफ देखते हुए बोलीं थीं।
"अरे दादी मां,कोई बात नहीं। हम आएं या आप आएं एक ही बात है ,पर अब आप यहीं पर रहना हमारे पास .."कार्तिक खुश होकर अपनी दादी मां से बोला था।
उन्होंने फिर से बच्चे को गले लगा लिया। घर में काफी उत्साह का माहौल बना हुआ था!

अभी उन्हें आए हुए एक महीने ही हुए थे तभी एक दिन सुनंदा बेडरूम में पति अभिनव से बोली..."सुनो, अभी माताजी और पिता जी आए हुए हैं। ये अच्छा मौका है । इनसे सारी प्रॉपर्टी लिखवा लेते हैं। गांव में जो आपके भाई हैं उनको खबर भी नहीं लगेगी..."
कार्तिक बेड पर लेटा अपने मम्मी पापा की सारी बातें सुन रहा था ।पर उनलोगों को खबर नहीं थी ,वो आपस में बातें किए जा रहे थे।

दो दिन बाद अभिनव ऑफिस से आते समय प्रॉपर्टी के पेपर बनवा लाया और अपने मां,पिता जी के कमरे में गया। उसके साथ सुनंदा भी थी।
"मां, पिता जी मुझे आपदोनों से जरूरी बात करनी है, आपने मेरे छोटे भाई के लिए तो बहुत कुछ किया है पर मेरे लिए कुछ भी नहीं किया, इसलिए शहर में जो आपका घर है उसका पेपर बनवा लाया हूं इसपर हस्ताक्षर कर दीजिए।"
"बेटा ,मेरे दो बेटे हैं और दोनों को मुझपर बराबर का हक है इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकता" उसके पिता जी ने बोला।

 तभी कहीं से खेलता हुआ कार्तिक वहां पहुंच गया!
"दादा जी पापा आपसे लड़ाई कर रहे हैं?
कार्तिक ने" मासूमियत "भरे लहजे में अपने दादा जी से बोला!
"हां" बेटा देखो ना ये गलत चीज के लिए जिद कर रहा तभी नन्हा सा कार्तिक अपने पिता से कहा।
"पापा , आप और मम्मा तो हमेशा मुझे समझाते हो कि बड़ों से ऐसी बात नहीं करते फिर आज आपको क्या हुआ? आप दादा जी, दादी जी से ऐसे बात कैसे कर सकते हो?"
तभी अभिनव की आंखो में आंसू आ गए और वो अपनी पत्नी के तरफ देखते हुए बोला "देख लो और सुधर जाओ, जो हम अपने बड़ों के साथ करते हैं वहीं हमारा बच्चा भी सीखता है..और हां ये कोई प्रॉपर्टी के पेपर नहीं है नकली पेपर हैं जिसे मैंने अपने एक दोस्त से बनवाया है...
मैं मां पिता जी और भाई से बहुत प्यार करता हूं , मैं कभी भी अपने छोटे भाई से उसका हक नही छीन सकता । ये जो कुछ भी यहां हुआ बस तुम्हें दिखाने के लिए था।
उसके बाद दोनों ने माता पिता से माफी मांगी और फिर  सब हंसी खुशी से रहने लग गए।

* लेखिका : कविता सिंह

                    ( नोएडा )