ज्योती मोनिका की कविता : " माँ... "

ज्योती मोनिका की कविता : " माँ... "

      ज्योती मोनिका की कविता :
                     " माँ... "
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बचपन में नानी ने कहा कि  
तू  तो अपनी
 माँ जैसी  है 
ना नानी , मैं कहां माँ जैसी ?
मेरी  माँ  तो सुन्दर  इतनी  
जेसे  कोई  परी हो जैसी 
प्यारी सी न्यारी सी वो 
किसी देश की राजकुमारी  सी  वो
आंखें उसकी  काली  - काली   
मुस्कान तो है सबसे निराली 
मुझसे  लाड़ लड़ाती  है 
बड़े प्यार से गले लगाती  है 
जब मैं गले लगती हूं माँ से 
एक सुकुन सा पा जाती हूं
अपने हाथों से खाना खिलाती  है 
आलू ,पूरी , खीर , लड्डू
 झट से मैं खा जाती  हूं 
उसकी  लोरी,  प्यारी-प्यारी  
झटपट  सो  जाती हूं

माँ, मुझे तू  बहुत  याद  आती  है 
अब मैं  झटपट ना  सो  पाती हूं
अब  खुद में तुझको पाती  हूं और 
तुझ  सी  मैं बन जाती हूं
वही रातों को तेरा  जागना   अपनी हर  तकलीफ से  भागना 
वही  अकेलापन  तेरा , 
होकर भी कोई साथ ना होना 
बस तेरी तरह अपने  बच्चों  के 
 लिए  मैं जी जाती हूं 
माँ  ,अब मुझमें तुझी को
 मैं पाती हूं
हां, अब मैं 'माँ' सी ही दिखती हूं!

   * कवयित्री : ज्योती मोनिका  
                       ( ग्रेटर नोएडा )