वरिष्ठ कवि श्री वागीश सारस्वत की कलम से शिक्षक दिवस पर एक प्रासंगिक कविता....एकलव्य का अंगूठा

वरिष्ठ कवि श्री वागीश सारस्वत की कलम से शिक्षक दिवस पर एक प्रासंगिक कविता....एकलव्य का अंगूठा
कवि  : वागीश सारस्वत 

वरिष्ठ कवि श्री वागीश सारस्वत की कलम से शिक्षक दिवस पर एक प्रासंगिक कविता....


              एकलव्य का अंगूठा
             -------------------------
गलती तुम्हारी नहीं थी एकलव्य
जो काट दिया अंगूठा 
द्रोणाचार्य के मांगने पर
तुम जानते थे 
सत्य के हिमायती नहीं हैं द्रोणाचार्य
फिर भी काट दिया था अंगूठा 
गुरुदक्षिणा के नाम पर

समय बदलता है
तो शब्द के अर्थ
बदल जाते हैं
मगर द्रोणाचार्य 
कभी नहीं बदलते
कई चेहरों में उपस्थित रहते हैं आसपास
आहिस्ता- आहिस्ता निकलते हैं
अपने हितों की बैसाखियां बनाकर चलते हैं
और अपनों को ही छलते हैं

श्रद्धा में डूबे एकलव्य 
चुपचाप सीख लेते हैं पार्थ को परास्त करने का हुनर
पर 
गुरुभक्ति एकलव्यों का कवच नहीं बन पाती
श्रद्धा और श्रम से हासिल हुनर को छीन लेते हैं द्रोणाचार्य
श्वान-मुख को तीरों से बंद करके भी एकलव्य बच नहीं पाते हैं
अपने गुरु के हाथों ही
ठगे जाते हैं

द्रोणाचार्य 
अब भी पढ़ाते हैं 
कौरवों और पांडवों को साथ-साथ
करते हैं पक्षपात

कौरव और पांडव युद्ध में जुटेंगे जब
द्रोणाचार्य राजमोह से नहीं बच पाएंगे
अंगूठा कटवाकर एकलव्य 
हमेशा छटपटाएंगे
सत्य का विरोध 
द्रोण की मजबूरी है
राजगुरु की पदवी जरूरी है
द्रोणाचार्य बदल नहीं सकते
नहीं बदल सकते कौरव और पांडव
मगर एकलव्य बदल सकते हैं
श्रद्धा के शाप से  हो सकते हैं मुक्त

छल और प्रपंच 
द्रोणाचार्य के साथी हैं 
तो श्रद्धा और निष्ठा एकलव्यों की ढाल हैं
अंगूठा कटे एकलव्य 
द्रोणाचार्यों के लिए चुनौती हैं
और द्रोणाचार्य 
विकसित समाज के लिए पनौती हैं

द्रोण के द्वेष से समाज मुक्त होना चाहिए
एकलव्यों का अंगूठा अब नहीं कटना चाहिए

अगर कटता रहेगा 'एकलव्य' का अंगूठा
तो शिक्षा का लहलहाता पेड़ ठूँठ बन जाएगा
द्रोणाचार्यों की वजह से 'गुरु' शब्द
इस दुनिया का सबसे बड़ा झूठ बन जाएगा

* कवि  : वागीश सारस्वत 

                       ( मुंबई )